थैलेसीमिया क्या है, लक्षण क्या है, कैसे होता है, रोकने के उपाय क्या है और थैलेसीमिया का इलाज क्या है ।

 थैलेसीमिया क्या है

थैलेसीमिया (Thalassemia) एक अनुवांशिक रक्त विकार (genetic blood disorder) है जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन का उत्पादन सही तरीके से नहीं हो पाता। हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells) में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रोटीन है, जो शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है।
थैलेसीमिया के प्रकार:
  • थैलेसीमिया माइनर (Thalassemia Minor):
यह हल्का रूप होता है, जिसमें व्यक्ति को कोई खास लक्षण महसूस नहीं होते या हल्का एनीमिया (रक्त की कमी) हो सकता है।
  • थैलेसीमिया मेजर (Thalassemia Major):
यह गंभीर स्थिति होती है, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन बहुत कम बनता है, जिससे बार-बार रक्त चढ़ाने (Blood Transfusion) की जरूरत पड़ती है।
  • थैलेसीमिया इंटरमीडिया (Thalassemia Intermedia):
यह माइनर और मेजर के बीच की स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति को कभी-कभी खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
लक्षण:
  • लगातार थकान और कमजोरी
  • त्वचा पीली या फीकी पड़ जाना
  • हड्डियों का कमजोर होना
  • प्लीहा (Spleen) का बढ़ जाना
  • साँस लेने में दिक्कत
थैलेसीमिया कैसे होता है?
अनुवांशिक कारण (Genetic Cause):
  • थैलेसीमिया तभी होता है जब व्यक्ति को माता-पिता दोनों से दोषपूर्ण जीन प्राप्त होते हैं।
  • यदि एक माता-पिता से दोषपूर्ण जीन प्राप्त होता है, तो व्यक्ति थैलेसीमिया माइनर (वाहक/carrier) बनता है, जिसमें कोई गंभीर लक्षण नहीं होते।
  • यदि दोनों माता-पिता से दोषपूर्ण जीन मिलते हैं, तो व्यक्ति को थैलेसीमिया मेजर या इंटरमीडिया हो सकता है, जो गंभीर हो सकता है।
हीमोग्लोबिन उत्पादन में कमी:
  • थैलेसीमिया में शरीर में हीमोग्लोबिन के आवश्यक घटकों (α-globin या β-globin) का उत्पादन ठीक से नहीं हो पाता।
  • इसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं असामान्य हो जाती हैं और जल्दी टूट जाती हैं, जिससे एनीमिया (खून की कमी) हो जाती है।
हीमोग्लोबिन के प्रकार के आधार पर:
  • अल्फा थैलेसीमिया (Alpha Thalassemia):
  • इसमें α-globin श्रृंखला का उत्पादन प्रभावित होता है।
  • बीटा थैलेसीमिया (Beta Thalassemia):
  • इसमें β-globin श्रृंखला का उत्पादन प्रभावित होता है।
थैलेसीमिया को रोकने के उपाय (Prevention of Thalassemia)
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक (genetic) बीमारी है, जिसे पूरी तरह से रोकना संभव नहीं है, लेकिन कुछ सावधानियों से इसे अगली पीढ़ी में फैलने से रोका जा सकता है।
1. शादी से पहले थैलेसीमिया टेस्ट कराएं
  • यदि किसी व्यक्ति को थैलेसीमिया माइनर है, तो शादी से पहले उनके होने वाले जीवनसाथी का भी थैलेसीमिया टेस्ट कराना जरूरी है।
  • यदि दोनों पार्टनर थैलेसीमिया माइनर हैं, तो उनके बच्चे को थैलेसीमिया मेजर होने का खतरा रहता है।
  • ऐसी स्थिति में, परिवार नियोजन पर सही निर्णय लेना जरूरी होता है।
2. जेनेटिक काउंसलिंग (Genetic Counseling) लें
  • यदि किसी व्यक्ति को थैलेसीमिया माइनर है, तो वे डॉक्टर से जेनेटिक परामर्श (Genetic Counseling) ले सकते हैं।
  • इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि भविष्य में उनके बच्चों को थैलेसीमिया होने की कितनी संभावना है।
3. गर्भावस्था में जेनेटिक टेस्ट कराएं
  • गर्भावस्था के दौरान प्रेनाटल टेस्टिंग (Prenatal Testing) करवाई जा सकती है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि अजन्मे बच्चे को थैलेसीमिया होगा या नहीं।
  • इसके लिए निम्नलिखित टेस्ट किए जाते हैं:
  • Chorionic Villus Sampling (CVS)गर्भावस्था के पहले तिमाही (10-12 सप्ताह) में किया जाता है।
  • Amniocentesisगर्भावस्था के दूसरे तिमाही (16-20 सप्ताह) में किया जाता है।
4. थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता बढ़ाएं
  • स्कूल, कॉलेज और समाज में थैलेसीमिया की जानकारी और टेस्टिंग को बढ़ावा देना जरूरी है।
  • युवाओं को इसके बारे में बताया जाए ताकि वे समय रहते जरूरी टेस्ट करा सकें।
5. बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplant) पर विचार करें
  • यदि किसी बच्चे को थैलेसीमिया मेजर हो जाता है, तो उसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए ठीक किया जा सकता है।
  • हालांकि, यह एक महंगा और जटिल इलाज है, इसलिए रोकथाम ही सबसे अच्छा तरीका है।
थैलेसीमिया का इलाज (Treatment of Thalassemia )
थैलेसीमिया का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन कुछ चिकित्सा उपायों से इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है और रोगी का जीवन बेहतर बनाया जा सकता है।

1. बार-बार रक्त चढ़ाना (Regular Blood Transfusion)
  • थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित मरीजों को हर 2-4 सप्ताह में रक्त चढ़ाने (Blood Transfusion) की आवश्यकता होती है।
  • इससे शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बनाए रखा जाता है और एनीमिया (खून की कमी) से बचा जा सकता है।
  • लगातार ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण शरीर में आयरन (Iron) अधिक मात्रा में जमा हो सकता है, जिससे अन्य दिक्कतें हो सकती हैं।


2. आयरन चिलेशन थेरेपी (Iron Chelation Therapy)

  • बार-बार खून चढ़ाने से शरीर में आयरन की अधिकता (Iron Overload) हो सकती है, जो हृदय, यकृत (Liver) और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • आयरन को शरीर से बाहर निकालने के लिए चिलेशन थेरेपी दी जाती है।
  • इसके लिए डेफेरोक्सामाइन (Deferoxamine), डेफेरिप्रोन (Deferiprone) और डेफेरासिरॉक्स (Deferasirox) नामक दवाएं दी जाती हैं।

3. फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स (Folic Acid Supplements)

  • फोलिक एसिड शरीर में नई रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells) के निर्माण में मदद करता है।
  • थैलेसीमिया रोगियों को नियमित रूप से फोलिक एसिड लेने की सलाह दी जाती है।

4. बोन मैरो या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Bone Marrow or Stem Cell Transplant)

  • यह थैलेसीमिया का एकमात्र स्थायी इलाज हो सकता है।
  • इसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति (अक्सर भाई-बहन) के बोन मैरो या स्टेम सेल को रोगी में प्रत्यारोपित किया जाता है।
  • यह प्रक्रिया महंगी और जटिल होती है तथा इसके लिए उपयुक्त डोनर (Donor) मिलना जरूरी होता है।


5. जीन थेरेपी (Gene Therapy) - भविष्य का इलाज

  • वैज्ञानिक जीन थेरेपी पर शोध कर रहे हैं, जिसमें दोषपूर्ण जीन को ठीक करने की कोशिश की जाती है।
  • यदि यह उपचार सफल होता है, तो यह भविष्य में थैलेसीमिया का स्थायी समाधान बन सकता है।

 

टिप्पणियाँ

  1. थेलेसामिया से जुड़ी गहरी जानकारी देने के लिए आपको बहुत धन्यवाद 🙏

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